Pitru paksha 2023: गया को क्यों कहते हैं पितरों का तीर्थ, जानें गया किए जाने वाले श्राद्ध का क्या है महत्व

पं. गुरुश्री हरिओम बुटोलिया जी से जाने गया में कैसे मिलती है पितरों को मुक्ति

हिंदू धर्म में जिस प्रकार देवी-देवताओं की पूजा के लिए तमाम तीर्थों पर जाकर उनकी साधना की जाती है, कुछ वैसे ही पितरों की प्रसन्न और उनके मुक्ति के लिए गया धाम पर जाकर विशेष रूप से श्राद्ध तथा पिंडदान करने का विधान है. हिंदू धर्म में गया एक ऐसा तीर्थ है जहां पर जाकर श्रद्धा एवं विश्वास के साथ अपने पितरों या फिर कहें पूर्वजों के लिए किया जाने वाला श्राद्ध पितृ दोष से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है.

मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति गया तीर्थ पर जाकर किसी पितर विशेष के लिए उसका नाम, गोत्र आदि के साथ पिंडदान करता है तो उसे परमगति प्राप्त होती है. हिंदू मान्यता के अनुसार गया तीर्थ में किया जाने वाला श्राद्ध कुल की सात पीढि़यों को तार देता है. आइए गया तीर्थ में किए जाने वाली पितृपूजा के महत्व को विस्तार से जानते हैं.

गया से जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यता

हिंदू मान्यता के अनुसार गया एक ऐसी पवित्र नगरी है जहां पर भगवान श्री विष्णु पितरों के देवता के रूप में स्वयं निवास करते हैं. मान्यता यह भी है कि पौराणिक काल में भगवान श्री राम और माता सीता ने भी गया में राजा दशरथ के लिए विशेष रूप से श्राद्ध किया.

कितने दिन तक करते हैं पितरों का श्राद्ध

गया तीर्थ में 3, 5, 7 अथवा 17 दिनों तक रुककर अपने पितरों के लिए श्राद्ध एवं पितृपूजा का विधान है. हालांकि समय की कमी के कारण आप इसे एक दिन में ही करके अपने पितरों की मुक्ति का मार्ग खोल सकते हैं. यदि आपके पास समय की कमी है तो आप फल्गु नदी में स्नान करने के बाद पार्वण विधि से पितरों का श्राद्ध करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.

कब और क्यों किया जाता है श्राद्ध

पौराणिक मान्यता के अनुसार गयासुर को ब्रह्मा जी ने ने यह वरदान दिया था कि जो कोई व्यक्ति पितृपक्ष के दौरान इस स्थान पर अपने पितरों के लिए पिंडदान करेगा, उसके पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होगी. पितरों के श्राद्ध एव पिंडदान के लिए मध्याह्न बेला या फिर कहें अपराह्न का समय उत्तम माना गया है. ऐसे में यहां जाकर अपने पितरों के लिए श्राद्ध 11:30 से 12:30 बजे के बीच करें.

गया में श्राद्ध का क्या है नियम

गया तीर्थ में जाकर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को दिन भर में एक बार अन्न ग्रहण करना चाहिए और किसी भी प्रकार का अमर्यादित काम नहीं करना चाहिए. पितरों का श्राद्ध करने के लिए गया में रात्रि के दौरान रुकने वाले लोगों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और निंदा और झूठ बोलने से बचना चाहिए.

बालू से किया जाता है यहां पिंडदान

हिंदू मान्यता के अनुसार गया में बालू का पिंडदान करने का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. मान्यता है कि जब भगवान राम और सीता राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए गया पहुंचे और उसकी तैयारी प्रारंभ की तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है. तब सीता जी ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानते हुए बालू से पिंंड बनाकर पिंडदान की प्रक्रिया पूरी की. तब से लेकर आज तक यहां पर पितरों की मुक्ति के लिए बालू के पिंडदान करने की मान्यता बनी हुई है. हाईन्यूज़ !

 

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