बिहार में विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 202 सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की है. एनडीए की यह जीत बेहद अहम मानी जा रही है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (17 नवंबर, 2025) को रामनाथ गोयनका लेक्चर 2025 को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा चुनाव इसलिए जीतती है, क्योंकि वह 24×7 जनता के विकास और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने कहा कि बिहार चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर यह सबक दिया है कि भारत की जनता की आकांक्षाएं और महत्त्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची हैं. आज देश की जनता सिर्फ उन राजनीतिक दलों पर विश्वास करती हैं, जिनकी नीयत साफ हो, जो जनता की आशाओं को पूरा करें और विकास को प्राथमिकता दें.
आंकड़ों से जानें नीतीश सरकार के नेतृत्व में बिहार में बदलाव की स्थिति
इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंस के 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2005 से पहले बिहार की अर्थव्यवस्था 90 के दशक और शुरुआती 2000 के सालों में साफ तौर पर लड़खड़ा रही थी. लालू और राबड़ी के दौर में भी बिहार में सब कुछ दयनीय स्थिति में नहीं था, लेकिन राज्य की आर्थिक वृद्धि ठहरी हुई थी, जो आगे सालों में आए नतीजों के मद्देनजर बहुत ही निम्न स्तर के हो गए. वहीं, 1995–2005 के बीच राज्य का जीडीपी विकास दर बेहद धीमा रहा. उद्योग और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में बहुत कम विकास हुआ.
2005 से पहले बिहार टूटी सड़कों, अनियमित बिजली आपूर्ति और चरमराती कानून-व्यवस्था की समस्या से जूझ रहा था. उद्योग भी बिहार से दूरी बनाए हुए थे, पढ़े-लिखे युवा व्यापक पैमाने पर पलायन कर रहे थे और आम लोग जंगलराज के साये में जीते थे.
वहीं, जब साल 2005 में नीतीश कुमार बिहार की सत्ता में आए, तब उन्होंने सड़कों और पुलों के जरिए उन गांवों को जोड़ना शुरू किया, जिन्हें पीढ़ियों से भुला दिया गया था. बिहार के ग्रामीण इलाकों के घर-घर तक बिजली पहुंचने लगी, जो पहले दिन में मात्र कुछ घंटे के लिए ही आती थी.
इसके अलावा, नीतीश सरकार की लड़कियों के लिए साइकिल योजना और पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण जैसी योजनाओं ने गांवों की सामाजिक संरचना को बदल दिया. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में भी गंभीर और निरंतर निवेश शुरू हुआ.
जीडीपी विकास दर
2005 से पहले बिहार मुश्किल से 5 परसेंट की विकास दर हासिल कर पाता था, लेकिन 2014 से 2020 तक राज्य ने 8 परसेंट से ज्यादा का औसत विकास दर बनाए रखा. वहीं, सिर्फ साल 2023–24 में बिहार ने 9.2 परसेंट की वृद्धि दर्ज की.
नीतीश कुमार के 20 साल के शासन के बाद आज बिहार कहां खड़ा है?
- बिहार में FDI की बात करें तो अक्टूबर 2019 से मार्च 2025 ₹1,650 करोड़ थी, जो देश के कुल FDI का केवल 0.08 परसेंट है और इसमें बिहार के रैंक 18 था.
- बिहार की प्रति व्यक्ति आय सालाना 66,828 रुपये है. हालांकि, देश के अन्य राज्यों के मुकाबले यह सबसे कम है.
- बिहार में 2022-23 में फैक्ट्रियों की संख्या 3,307 थी. देश के 15 राज्यों में बिहार से अधिक फैक्ट्रियां हैं.
- बिहार से पलायन की बात करें तो, बिहार के 50 प्रतिशत घर ऐसे हैं, जो पलायन से प्रभावित है.
- हर घर नल से जल योजना के तहत ग्रामीण घरों में 95.71% पाइपयुक्त जल कनेक्शन है. 11 राज्यों ने 100% कनेक्टिविटी हासिल कर ली है.
- कुल शुद्ध कृषि योग्य भूमि का 43% क्षेत्र, अभी भी सिंचाई से बाहर है.
- प्रति व्यक्ति विद्युत उपलब्धता पर ध्यान दें, तो साल 2023-24 में 394 किलोवाट प्रति घंटा थी, जो भारत में सबसे कम है.
- बिहार में बिजली वितरण और ट्रांसमिशन लॉस की बात करें तो 49.4 परसेंट है. जम्मू-कश्मीर के बाद यह देश में दूसरा सबसे ज्यादा नुकसान है.
- गर्भवती महिलाओं में एनीमिया को लेकर सामने आए आंकड़ों में यह नंबर 63.1% (2019-21) है, जो भारत में सबसे अधिक है.
- बिहार में सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट दर के आंकड़ों के मुताबिक, 2023-24 में प्रेपरेटरी स्कूल (कक्षा III–V) में 14%, मिडिल स्कूल (कक्षा VI–VIII): 25% और सेकेंडरी स्कूल (कक्षा IX–XII) में 21% है, जो देश में सबसे अधिक हैं.
- ग्रामीण बिहार में कंस्क्ट्रक्शन के काम में लगे श्रमिकों की बात करें, तो 2023-24 में उनकी औसत दैनिक मजदूरी 366 रुपये मिलता है, जबकि पूरे भारत में यह आंकड़ा 417 रुपये का है अर्थात बिहार में राष्ट्रीय औसत से भी कम है.
- वहीं, ग्रामीण बिहार में कृषि मजदूरों की बात करें तो 2023-24 में यह आंकड़ा 338 रुपये प्रतिदिन का है, जो राष्ट्रीय औसत 373 से भी कम है..
- नीतीश सरकार के दौरान बिहार के कर्ज पर ध्यान दें, तो साल 2007 में 49,846 करोड़ रुपये, और 2025 में 3,61,522 करोड़ रुपये है, यानि बिहार के कर्ज में 625 परसेंट की बढ़ोत्तरी हुई है.
- 2005-06 से 2023-24 के बीच सामाजिक क्षेत्र का खर्च 13 गुना बढ़ा. स्वास्थ्य क्षेत्र का खर्च 13 गुना बढ़ा और शिक्षा क्षेत्र का खर्च 10 गुना बढ़ा.
- वहीं, बिहार में जन्म के समय औसत आयु 65.8 वर्ष (2006-10) से बढ़कर 69.5 वर्ष (2016-20) हो गई है. हाईन्यूज़ !


















