सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (18 नवंबर, 2025) को बच्चों के मिसिंग होने की खबरों पर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा कि उन्होंने अखबार में पढ़ा है कि हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है. कोर्ट ने कहा कि देश में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया इतनी जटिल है इसलिए इसका उल्लंघन होना स्वभाविक है. उन्होंने कहा कि अडॉप्शन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किए जाने की जरूरत है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने केंद्र से बच्चा गोद लेने की प्रणाली को सुव्यवस्थित करने को कहा. जस्टिस नागरत्ना ने मौखिक रूप से कहा, ‘मैंने अखबार में पढ़ा है कि देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है. मुझे नहीं पता कि यह सच है या नहीं, लेकिन यह एक गंभीर मुद्दा है.’
सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि गोद लेने की प्रक्रिया कठोर है इसलिए इसका उल्लंघन होना स्वाभाविक है और लोग बच्चा पाने के लिए अवैध तरीके अपनाते हैं. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि लापता बच्चों के मामलों से निपटने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाना है, जिसके लिए उन्होंने छह सप्ताह का समय मांगा. हालांकि, कोर्ट ने उन्हें यह समय देने से इनकार कर दिया और दिसंबर तक प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है.
बेंच ने 14 अक्टूबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लापता बच्चों के मामलों को संभालने के लिए एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने और महिला और बाल विकास मंत्रालय से संचालित मिशन वात्सल्य पोर्टल पर प्रकाशन के लिए उनके नाम और संपर्क विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दे.
कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जब भी पोर्टल पर किसी गुमशुदा बच्चे के बारे में शिकायत प्राप्त हो तो सूचना को संबंधित नोडल अधिकारियों के साथ साझा किया जाना चाहिए. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से लापता बच्चों का पता लगाने और ऐसे मामलों की जांच के लिए गृह मंत्रालय के तत्वावधान में एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाने को भी कहा था.
गैर सरकारी संगठन गुरिया स्वयं सेवी संस्थान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बच्चों के अपहरण या गुमशुदा होने के अनसुलझे मामलों के अलावा भारत सरकार की ओर से निगरानी किए जाने वाले खोया/पाया पोर्टल पर उपलब्ध सूचना के आधार पर की जाने वाली कार्रवाई का उल्लेख किया था.
याचिका में पिछले साल उत्तर प्रदेश में दर्ज पांच मामलों के आधार पर अपनी दलील पेश की गई, जिनमें नाबालिग लड़कों और लड़कियों का अपहरण कर उन्हें बिचौलियों के नेटवर्क के जरिए झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में तस्करी कर ले जाया गया था. हाईन्यूज़ !


















