29 नवंबर को सांख्यिकी मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत की अर्थव्यवस्था ने जुलाई से सितंबर तक की तिमाही में सिर्फ 5.4% की वृद्धि दर्ज की, जो पिछले सात तिमाहियों में सबसे कम है. इस आंकड़े के आने से पहले ही सरकार में यह सवाल उठने लगा था कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2024-25 के लिए 7.2% की आर्थिक वृद्धि का अनुमान क्यों लगाया, जबकि बाकी संकेत अच्छे नहीं थे.
सरकार की चिंता यह थी कि आरबीआई द्वारा उठाए गए कदमों की वजह से क्रेडिट (ऋण) की वृद्धि कम हो रही थी. जब ऋण की वृद्धि कम होती है, तो कंपनियां और लोग नए निवेश और खर्च नहीं करते, जो आर्थिक विकास के लिए ज़रूरी है.
इसके अलावा, सरकार को यह भी लगता था कि आरबीआई का ज्यादा ध्यान खाद्य खाने पीने की वस्तुओं और सोने/चांदी की महंगाई पर केंद्रित हो गया है, जबकि इन चीज़ों की कीमतों पर आरबीआई का ज्यादा नियंत्रण नहीं है. सरकार का कहना था कि जब आरबीआई इन चीज़ों पर ध्यान दे रहा है, तो गैर-खाद्य क्षेत्रों (जैसे निर्माण, उद्योग आदि) की वृद्धि पर असर पड़ रहा है.
आरबीआई और सरकार के बीच दरार क्यों?
आरबीआई ने पहले 2024-25 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान बढ़ाया था, लेकिन बाद में मौसम (जैसे भारी बारिश) और कम सरकारी खर्च की वजह से वृद्धि में कमी आई. इसके बाद, आरबीआई ने कुछ कदम उठाए, जैसे असुरक्षित व्यक्तिगत ऋणों पर कड़ी निगरानी, ताकि भविष्य में कोई वित्तीय संकट न हो.
सरकार को लगता था कि इन कदमों का असर आर्थिक विकास पर पड़ रहा है. उदाहरण के लिए, अक्टूबर में खाद्य मुद्रास्फीति (खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि) 10.87% तक पहुंच गई, जो पिछले 15 महीनों का सबसे ऊँचा स्तर था.
आरबीआई का मुख्य लक्ष्य है मुद्रास्फीति (महंगाई) को 4% के आसपास रखना, लेकिन सरकार को लगता था कि आरबीआई का ध्यान ज्यादा खाद्य महंगाई पर केंद्रित हो गया है. सरकार का कहना था कि आरबीआई की कड़ी नीतियों की वजह से अन्य क्षेत्रों में विकास धीमा हो रहा है, जबकि खाद्य महंगाई पर उसका ज्यादा नियंत्रण नहीं है. हाईन्यूज़ !