सेवा,अनुशासन और परंपराओं को सहेजे सिख धर्म में अकाल तख्त साहिब का है बहुत बड़ा महत्व

अकाल तख्त साहिब ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में बर्तन और जूते साफ करने की सजा सुनाई है. सिख धर्म में इस सजा को ‘तनखा’ कहा जाता है. अकाल तख्त सिख धर्म की सबसे बड़ी संस्था है. 

अकाल तख्त: अमर का सिंहासन
अकाल तख्त  जिसका अर्थ है “अमर का सिंहासन”, सिखों की सबसे ऊँची धार्मिक और राजनीतिक संस्था है. “अकाल” का अर्थ है “बिना समय का”, जो भगवान के लिए एक अन्य नाम है, जबकि “तख्त” का मतलब है “सिंहासन”.

श्री अकाल तख्त की स्थापना गुरु हरगोबिंद जी ने 15 जून, 1606 को की थी, जिसे अब 2 जुलाई को मनाया जाता है. इसे सिख समुदाय की आध्यात्मिक और सांसारिक चिंताओं को सुलझाने के लिए एक स्थान के रूप में स्थापित किया गया था.

बाबा बुड्ढा जी और भाई गुरदास जी ने अपने पवित्र हाथों से इस दिव्य संरचना को तैयार किया. राजनीति और धर्म, जिन्हें मिरी-पिरी और भगति-शक्ति के रूप में जाना जाता है, इस युग्म के दिव्य अनुभव का प्रतीक हैं. अकाल तख्त ने आत्म-सम्मान, स्वतंत्रता और मूल गुरमत विचारों के प्रति निडरता की भावना को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है.

पवित्र अमृत सरोवर की खुदाई के समय दरबार साहिब के सामने एक ऊंचा स्थान बना था. जब गुरु ग्रंथ साहिब को 1604 में दरबार साहिब में स्थापित किया गया, तो इसे हर रात विश्राम के लिए इस कमरे में लाया जाता था. गुरु अर्जन देव जी इस कमरे में गुरु ग्रंथ साहिब के लिए रखे खाट के नीचे आराम करते थे. यह कमरा आजकल कोठा साहिब के नाम से जाना जाता है.

अकाल तख्त, सिख धर्म का सबसे ऊंचा तात्कालिक स्थान, छठे सिख गुरु गुरु हरगोबिंद साहिब जी द्वारा 1609 में बाबा बुड्ढा जी और भाई गुरदास जी की सहायता से स्थापित किया गया था. गुरु ने इसका नाम अकाल तख्त रखा था. गुरु हरगोबिंद साहिब यहां जरूरतमंदों की समस्याएँ सुनते थे. इस स्थान पर गुरु ने मिरी और पीरी की दो तलवारें धारण कीं, और सिखों को हथियार और घोड़े चढ़ाने के लिए कहा, जिससे वे संत और सिपाही दोनों बन सकें. यहाँ युद्ध नायकों की गाथाएँ गाने की परंपरा शुरू हुई.

अकाल तख्त की अपनी परंपराएं हैं, जैसे कि पुजारी शाम की प्रार्थना (रेहरास साहिब) और अरदास को तलवार हाथ में लेकर पढ़ते हैं. कुछ दुर्लभ हथियार जो सिख गुरुओं और सिख योद्धाओं से संबंधित हैं, दिन में सुनहरे पालकी में प्रदर्शित किए जाते हैं और हर शाम आगंतुकों को उनके बारे में बताया जाता है.

अकाल तख्त सभी तख्तों में सबसे सर्वोच्च है. पिछले शताब्दी में पंथ ने चार अन्य तख्त स्थापित किए गए हैं:

  • केसगढ़ साहिब (आनंदपुर)
  • पटना साहिब
  • हज़ूर साहिब
  • दमदमा साहिब

अकाल तख्त का जत्थेदार सिख पंथ का सबसे वरिष्ठ प्रवक्ता होता है और इसे किसी बाहरी राजनीतिक प्रभाव से मुक्त आध्यात्मिक नेता माना जाता है. वर्तमान जत्थेदार भाई जगिंदर सिंह वेदांती हैं.

अकाल तख्त की भूमिका 
अकाल तख्त की मूल संरचना गुरु हरगोबिंद जी, भाई गुरदास जी और बाबा बुड्ढा जी ने अपने हाथों से बनाई थी. कोई अन्य व्यक्ति या कलाकार इसे बनाने के लिए नहीं रखा गया था. गुरु जी ने कहा कि गुरु का यह सिंहासन पंथ के लिए सदैव कार्य करेगा. गुरु जी ने मंच की ऊंचाई बारह फीट बढ़ाई, जो तत्कालनी बादशाह जहांगीर के उस आदेश को चुनौती थी जिसके मुताबिक केवल सम्राट ही तीन फीट से ऊँचे मंच पर बैठ सकता है. गुरु हरगोबिंद नियमित रूप से इस ऊँचे मंच पर बैठते थे और सिखों के सभी विवादों का न्याय करते थे.

अकाल तख्त दरबार साहिब से थोड़ी कम ऊंचाई पर बनाया गया था, जो यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक कृपा की खोज हमेशा प्राथमिकता होनी चाहिए. गुरु हरगोबिंद अपने दिन की शुरुआत दरबार में पूजा से करते थे; फिर वह सुबह शिकार पर जाते थे और दोपहर में अकाल तख्त से लोगों को सुनते थे; शाम को वह फिर से दरबार लौटते थे प्रार्थना और भजन करने के लिए, और रात को वह और उनके अनुयायी अकाल तख्त पर लौटते थे ताकि वीरता की गाथाएँ सुन सकें.

अकाल तख्त से हुकमनामे (आदेश) जारी किए जाते हैं जो सिख धर्म या प्रथा पर मार्गदर्शन या स्पष्टीकरण देते हैं. यह धार्मिक अनुशासन के उल्लंघन या सिख हितों या एकता के खिलाफ गतिविधियों में लिप्त व्यक्तियों को दंडित कर सकता है.

एक बार सरबत खालसा ने अकाल तख्त पर बैठक की और महाराजा रणजीत सिंह को उनकी गलतियों के लिए दंडित करने का निर्णय लिया. रणजीत सिंह ने अनुशासन को स्वीकार किया और अकाल तख्त पर दंड पाने के लिए हाजिर हुए. हालांकि, उन पर शारीरिक दंड देने के बजाय भारी जुर्माना लगाया गया.

अकाल तख्त पर प्रदर्शित वस्तुएं
– गुरु हरगोबिंद साहिब की तलवारें (मिरी और पीरी का प्रतीक)
– गुरु गोबिंद सिंह जी की तलवार
– बाबा बुड्ढा जी की तलवार
– भाई जैथा जी की तलवार
– बाबा करम सिंह जी शहीद की तलवार
– बाबा दीप सिंह जी की तलवार
– अन्य महत्वपूर्ण हथियार

अकाल तख्त आज भी सिख राजनीति पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने का स्थान है. यह न्याय प्रशासन और सांसारिक गतिविधियों का प्रतीक है, जबकि श्री हरिमंदिर साहिब आध्यात्मिक शिक्षा का प्रतिनिधित्व करता है.

सिख धर्म का इतिहास और सिद्धांत
सिख धर्म एक एकेश्वरवादी सिद्धांत को मानता है.जिसकी स्थापना 15वीं शताब्दी के आखिर में पंजाब में गुरु नानक देव जी ने की थी. यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा संगठित धर्म है. जिसके करोड़ों अनुयायी हैं, जिन्हें सिख कहा जाता है. सिख धर्म के अपने विशिष्ट विश्वास और प्रथाएँ हैं.

सिख धर्म का मूल विश्वास एक सार्वभौमिक, निराकार और शाश्वत भगवान में है.जिन्हें “इक ओंकार” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “एक सर्वोच्च वास्तविकता”. सिखों का मानना है कि भगवान सृष्टि के निर्माता हैं और सभी मानव भगवान के लिए समान हैं,चाहे उनकी जाति, लिंग या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो.

गुरु ग्रंथ साहिब
सिख धर्म की शिक्षाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं, जो सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक है. इसे शाश्वत गुरु माना जाता है और यह विश्वास, नैतिकता और आध्यात्मिकता के मामलों में सिखों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करता है. गुरु ग्रंथ साहिब में सिख गुरुओं की भजन और लेखन शामिल हैं, साथ ही विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमियों के संतों और विचारकों के योगदान भी हैं.

सच्चाई और सेवा का महत्व
सिख धर्म सत्य, ईमानदारी और नैतिक जीवन जीने पर जोर देता है. सिखों को दूसरों की सेवा करने और अपने परिवारों के लिए मेहनत करने के लिए प्रेरित किया जाता है, साथ ही जरूरतमंदों के साथ अपने संसाधनों को साझा करने की भी सलाह दी जाती है. “सेवा” या निस्वार्थ सेवा का सिद्धांत सिख प्रथा का केंद्रीय हिस्सा है. गुरुद्वारों में लंगर (मुफ्त सामुदायिक रसोई) इसी सिद्धांत पर आधारित है.

नाम जपना
सिख धर्म का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू “नाम जपना” का सिद्धांत है, जिसमें भगवान के नाम का निरंतर स्मरण और ध्यान करना शामिल है. सिख “सिमरन” का अभ्यास करते हैं, जो भगवान के नाम का पुनरावृत्ति करने की प्रक्रिया है, जिससे वे दिव्य से गहरा संबंध स्थापित कर सकें और आध्यात्मिक विकास प्राप्त कर सकें.

जाति व्यवस्था का विरोध
सिख धर्म जाति व्यवस्था, मूर्तिपूजा, अनुष्ठानों और अंधविश्वासों को अस्वीकार करता है. यह समानता, सामाजिक न्याय और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देता है. सिख पुरुष “सिंह” उपनाम अपनाते हैं, जिसका अर्थ है “शेर”, जबकि सिख महिलाएँ “कौर” उपनाम लेती हैं, जिसका अर्थ है “राजकुमारी”, ताकि उनकी समानता और गरिमा को उजागर किया जा सके.

गुरुद्वारे:पूजा स्थल
सिख समुदाय गुरुद्वारों में इकट्ठा होता है, जो पूजा स्थलों और सामुदायिक केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं. गुरुद्वारे सभी धर्मों के लोगों के लिए खुले होते हैं और यहाँ प्रार्थना, सामूहिक गान (कीर्तन) और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है. गुरुद्वारे शिक्षा प्रदान करने, सामुदायिक गतिविधियों का आयोजन करने और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

सुखबीर सिंह बादल सहित अकाली नेताओं को सजा
अमृतसर में अकाल तख्त के ‘फसील’ यानी मंच से इस तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने सुखबीर सिंह बादल को सुखबीर बादल और सुखदेव ढींडसा से ‘कीर्तन’ सुनने के अलावा स्वर्ण मंदिर में एक घंटा श्रद्धालुओं के बर्तन और जूते साफ करने आदेश दिया है. इसके साथ ही सुखबीर सिंह बादल से शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष से इस्तीफा देने के लिए भी कहा है. 6 महीने के अंदर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारियों के चयन के लिए एक समिति भी बना दी है.

पैर में फ्रैक्चर की वजह से  व्हीलचेयर का इस्तेमाल कर रहे सुखबीर बादल और बागी नेता सुखदेव सिंह ढींडसा को दो दिन तक एक-एक घंटे के लिए ‘सेवादार’ की पोशाक पहनकर स्वर्ण मंदिर के बाहर बैठेंगे.दोनों नेता तख्त केसगढ़ साहिब, तख्त दमदमा साहिब, मुक्तसर के दरबार साहिब और फतेहगढ़ साहिब में भी दो दिनों के लिए ‘सेवादार’ की भूमिका में काम करेंगे.

इतना ही नहीं, सुखबीर बादल के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल को दी गई ‘फख्र-ए-कौम’ की उपाधि वापस ले ली गई है. इसके साथ ही पांच सिंह साहिबानों ने 2007 से 2017 के दौरान शिरोणणि अकाली दल सरकार की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने वाले कई  सिख नेताओं के लिए भी धार्मिक सजा की घोषणा की है.

क्यों सुनाई गई है सजा

‘तनखा’ की घोषणा से पहले सुखबीर बादल ने अपनी गलतियां स्वीकार कीं, जिसमें उन्होंने माना कि मुख्यमंत्री रहने के दौरान साल 2007 के ईशनिंदा मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को माफ कराने में भूमिका निभाई थी.

कई और नेताओं को भी मिली है सजा

जत्थेदार ने अकाली नेताओं-सुच्चा सिंह लंगाह, हीरा सिंह गाबड़िया, बलविंदर सिंह भूंदड़, दलजीत सिंह चीमा और गुलजार सिंह रणिके को स्वर्ण मंदिर में एक घंटे के लिए शौचालय साफ करने और फिर स्नान करने के बाद सामुदायिक रसोई में बर्तन धोने का आदेश दिया है.जत्थेदार ने कहा कि ये नेता एक घंटे तक कीर्तन भी सुनेंगे.

बीबी जगीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, सुरजीत सिंह रखड़ा, बिक्रम सिंह मजीठिया, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, चरनजीत सिंह अटवाल और आदेश प्रताप सिंह कैरों सहित अन्य अकाली नेताओं को भी स्वर्ण मंदिर में एक घंटे के लिए शौचालय साफ करने का आदेश दिया गया.

जत्थेदार ने 2007 से 2017 तक के पूरे अकाली मंत्रिमंडल, पार्टी की कोर कमेटी और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की 2015 की आंतरिक कमेटी को तलब किया था. हाईन्यूज़ !

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