भारत में कुत्तों के प्रति प्रेम (Dog Lover) की सोच और सम्मान की भावना को आज की बात नहीं है. इसकी जड़ें काफी गहरी और प्राचीन हैं. पुराने समय में कुत्तों के मात्र पालतू जानवर के रूप में नहीं, बल्कि धर्म, सुरक्षा और प्रतीकात्मक के रूप में देखते थे. यह पंरपरा हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है.
सबसे प्राचीन वेदों में से एक, ऋग्वेद करीब 3500 वर्ष पुराना ग्रंथ जिसमें कुत्तों की भूमिका को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है. इसमें इंद्र की दिव्य कुतिया सरमा का उल्लेख मिलता है, जिसे सभी कुत्तों की दिव्य पूर्वज माना गया है. कुत्तों को वैदिक युगों में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दर्जा प्राप्त था.
इसके साथ ही मौत के देवता यम के दो पालतू कुत्तों का उल्लेख देखने को मिलता है. इन कुत्तों का नाम शर्वरा और श्याम है. इन्हें नरक के द्वारपाल के रूप में जाना जाता है. यह भूमिका दर्शाती है कि, पृथ्वी पर कुत्तों को रक्षक और मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता था.
भारतीय संस्कृति में भगवान शिव के रुद्र रूप भैरव का प्रमुख वाहन भी कुत्ता था. शिव परंपरा में कुत्तों को सम्मान देने वाली गहरी आस्था के रूप में दर्शाया गया है. वहीं, भगवान दत्तात्रेय के साथ दिखाए गए 4 कुत्तों को 4 वेदों का प्रतीक माना जाता है.
महाभारत जैसी महात्मय महाकाव्य में भी कुत्तों की उपस्थिति का जिक्र देखने को मिलता है. कहानी की शुरुआत और अंत दोनों ही स्थानों पर कुत्तों की अहम भूमिका रही है. महाभारत के अंत में एक कुत्ता जो युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग चला जाता है, जो वफादारी और धर्म का प्रतीक है.
भारत के कई हिस्सों में आज भी यह परंपरा आज भी जीवंत है. केरल के परासिनिकादावु मुथप्पन मंदिर में कुत्तों को पूजा जाता है और उन्हें देवता का स्वरूप माना जाता है. जो दर्शाता है कि, भारत में कुत्तों के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना आज की बात नहीं बल्कि प्राचीन भारत में भी थी. हाईन्यूज़ !















