मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में बीते दिनों एक दिल दहला देने वाला हत्याकांड सामने आया था. यहां जादू-टोने की शंका में एक युवक ने अपने ही पड़ोसी की गर्दन पर कुल्हाड़ी से वार कर, उसकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया था. पत्नी की आंखों के सामने उसके पति की निर्मम हत्या के इस मामले में अब न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है.
खंडवा के द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश अनिल चौधरी की अदालत ने हत्याकांड के आरोपी चंपालाल उर्फ नंदू मेहर को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103(1) के तहत दोषी पाते हुए मृत्युदंड (फांसी) की सजा सुनाई है.
रात के सन्नाटे में मौत की चीखें
दरअसल यह घटना 12 दिसंबर 2024 की अंधेरी रात की है, खंडवा के हरसूद तहसील के ग्राम छनेरा निवासी रामनाथ बिलोटिया अपने घर में पत्नी शांतिबाई के साथ सो रहे थे. इस बीच रात करीब 2:30 बजे रामनाथ बाहर निकले, तो पड़ोसी नंदू धानक कुल्हाड़ी लेकर उनके घर आ धमका और चिल्लाने लगा तू जादू-टोना करता है. इसके बाद उसने रामनाथ पर बेरहमी से कुल्हाड़ी से वार कर दिया.
रामनाथ की पत्नी शांतिबाई जब बाहर आईं तो देखा कि नंदू रामनाथ की गर्दन काट रहा था. आरोपी इतना बेकाबू था कि हत्या के बाद भी शव के पास खड़ा होकर धमकाता रहा “कोई पास आया तो उसे भी काट दूंगा.” इससे गाँववाले डरकर घरों में छिप गए. इधर सूचना मिलने पर थाना पंधाना पुलिस मौके पर पहुँची, और आरोपी को मौके से ही कुल्हाड़ी समेत गिरफ्तार कर लिया.
DNA रिपोर्ट और सबूतों से साबित हुई दरिंदगी
हत्या के बाद जांच की जिम्मेदारी पंधाना थाना के उप निरीक्षक रामप्रकाश यादव को दी गई. उन्होंने घटनास्थल से आरोपी की खून से सनी कुल्हाड़ी, कपड़े, मृतक का सिर और धड़ अलग-अलग बरामद किए.
डीएनए रिपोर्ट में आरोपी के कपड़ों और कुल्हाड़ी पर मृतक रामनाथ के खून के निशान पाए गए. यही सबूत न्यायालय में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुवे. और इसी के चलते न्यायालय ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को स्वीकारते हुए आरोपी को मृत्युदंड की सजा सुनाई.
पुलिस और अभियोजन की कार्रवाई से सात माह में फैसला
इस हत्याकांड के बाद खंडवा पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार राय के निर्देशन में पुलिस ने सिर्फ 7 माह में केस का निपटारा कर दिया. वहीं अभियोजन की ओर से पैरवी सहायक जिला अभियोजन अधिकारी विनोद कुमार पटेल ने की थी. इधर यह केस खंडवा न्यायालय द्वारा तेज़ी से निपटाए गए मामलों में से एक माना जा रहा है. हालांकि कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, फांसी की सजा को लागू करने से पहले अनिवार्य रूप से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की पुष्टि आवश्यक होती है. बता दें कि, निचली अदालत द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा तब तक लागू नहीं की जा सकती, जब तक हाईकोर्ट उसे कानून सम्मत एवं उचित न ठहराए.
यदि हाईकोर्ट द्वारा सजा को बरकरार रखा जाता है, तो आरोपी को सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार प्राप्त होगा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी सजा की पुष्टि के बाद, आरोपी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल कर सकता है. यदि वह भी निरस्त हो जाती है, तभी फांसी की सजा को अमल में लाया जा सकता है. वहीं इस फैसले के बाद मृतक के परिजनों ने राहत की सांस ली है. शांतिबाई का कहना है मेरे पति को न्याय मिला, अब कोई और महिला इस दर्द से न गुजरे.हाईन्यूज़ !



















