बाबूलाल गौर और उमा भारती की लड़ाई में शिवराज को मिली थी सत्ता, मामा से आखिर कहां हुई चूक ?

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सदैव लो प्रोफाइल वाले नेता रहे हैं. उन्होंने अपना भविष्य मध्य प्रदेश में ही देखा. दिल्ली जाने की कामना उन्होंने नहीं रखी. हालांकि वे 1991 से 2005 तक कई बार लोकसभा के सदस्य रहे हैं और भाजपा की कई केंद्रीय कमेटियों में भी. पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा बहुमत से थोड़ा पीछे रह गई तथा कांग्रेस के कमलनाथ ने सरकार बना ली तब उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया था, लेकिन एक वर्ष से अधिक कमलनाथ सरकार न चला सके और शिवराज पुनः भोपाल पहुंच गए.

हालांकि मामा के नाम से लोकप्रिय शिवराज सिंह न उतने भोले हैं न उठापटक से अनजान, जैसा वे खुद को दिखाने की कोशिश करते हैं. सच बात तो यह है कि वे राजनीति के उस्ताद हैं. उखाड़ना-पछाड़ना तथा हर किसी को सहलाना भी उन्हें आता है और महत्त्वाकांक्षा भी उनमें भरपूर है. शायद इसलिए भी इस बार मोदी-शाह की टीम उनके पर कतरने को व्यग्र है.

मामा कुशल प्रशासक हैं और वोटरों को रिझाने में भी पारंगत हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में निवाड़ी के सिटिंग एमएलए अनिल जैन की हार तय थी, लोग उनसे बहुत नाराज थे. मामा वहां प्रचार के लिए गए, मतदान को सिर्फ एक हफ्ता बाकी था. हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद कार में बैठते ही उन्होंने अनिल जैन से पूछा कि मैं क्या बोलूं कि तुम जीत जाओ?

अनिल जैन ने कहा, आप निवाड़ी को जिला घोषित कर दीजिए. मुख्यमंत्री बोले, कैसी बच्चों जैसी बातें करते हो. वोटिंग को सिर्फ एक हफ्ता शेष है, आचार संहिता लगी हुई है. मैं अब कैसे यह बात बोल दूं? अनिल जैन मायूस से बैठे रहे. रैली को संबोधित करने के लिए मामा मंच पर चढ़े और घोषणा कर दी कि मैं निवाड़ी को जिला बनाने के लिए बोर्ड का गठन कर दूंगा. आप लोग अनिल जैन को जिताओ. मालूम हो कि बोर्ड गठन की घोषणा आचार संहिता के दायरे में नहीं आती है. अनिल जैन जीत गए.

शिवराज को समझ आ गया, वे नरेंद्र मोदी नहीं बन सकते

इस तरह का चातुर्य कोई कुशल राजनेता ही दिखा सकता है. शिवराज सिंह 2005 से 2018 तक लगातार मुख्यमंत्री रहे. नवंबर 2018 में कांग्रेस के कमलनाथ मुख्यमंत्री बने, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आ जाने से कांग्रेस में भगदड़ मची और कांग्रेस सरकार गिर गई. छींका टूटा मामा के नाम से और वे फिर मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बना दिए गए. यह बात भी उन्हें समझ आ गई कि वे नरेंद्र मोदी नहीं बन सकते.

हालांकि बीच में उन्हें यह ख्याल आया था कि जब तीन बार के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वे क्यों नहीं? लेकिन 2018 में तीन-चार विधायक कम रह जाने से वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और दिल्ली लाकर उनकी दुर्गति कर दी गई. इसलिए जैसे ही मौका मिला वे पुनर्मूषकोभव बन गए.

मगर राजनीति में कभी भी किसी की महत्वाकांक्षा समाप्त नहीं होती. मामा का सपना फिर से हिलोरें मारने लगा. इस बीच उन्होंने मध्य प्रदेश के प्रति एक उदासीनता दिखाई. यद्यपि उन्होंने खजाना लुटाने में कोई कोर कसर नहीं रखी. एक रुपए सेर चावल से लेकर बेटियों को साइकिलें व लैपटॉप भी बांटे. वृद्धावस्था पेंशन की घोषणाएं कीं. गैस सिलेंडर के दाम 400 रुपए कर दिए. किंतु जनता की नजरों में वे ऐसे उतरे कि हर व्यक्ति को लगने लगा अब मामा की सरकार नहीं लौटेगी. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इस संभावित हार को लेकर चिंतित था इसलिए 25 सितंबर को भाजपा ने जो दूसरी सूची जारी की उसमें तीन केंद्रीय मंत्री समेत सात सांसद भी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उतार दिए. यह घोषणा होते ही लगने लगा कि अब मामा निपट गए.

भाजपा की चाल से कांग्रेस खेमे में मायूसी

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को विधानसभा में लड़ाने की घोषणा कर दी. इनके अलावा चार और सांसद भी हैं. इससे लोगों के चेहरे खिले भी हैं और बुझे भी. मजे की बात सोमवार को जिन 39 लोगों की सूची जारी की गई, उसमें चार और सांसद भी हैं. भाजपा की इस चाल से कांग्रेस खेमे में मायूसी आई है. इस बार कांग्रेस की जीत तय मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा को लग रहा था कि यदि हिमाचल और कर्नाटक में हारने के बाद वह मध्य प्रदेश हार गई तो 2024 का लोकसभा चुनाव मुश्किल हो जाएगा.

अब नरेंद्र सिंह तोमर ठाकुर हैं. दिग्विजय सिंह के बाद प्रदेश में कोई ठाकुर मुख्यमंत्री नहीं बन सका है, इसलिए ठाकुर कांग्रेस का वोटर हो गया. यूं भी अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह प्रदेश में ठाकुरों को कांग्रेस के पाले में ला दिए थे. प्रह्लाद सिंह पटेल कुर्मी-लोध बिरादरी से आते हैं. मध्य प्रदेश में लोध भी पटेल लिखते हैं और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड तथा बघेलखंड क्षेत्र में लोधी आबादी बहुत है. उमा भारती के बाद से लोध बिरादरी भाजपा से नाराज थी. कुलस्ते आदिवासी हैं. भाजपा पिछड़ों को अपने पाले में लाने के लिए 1990 के बाद से ही सजग रही है. इसलिए उम्मीदवारों के चयन में उसने सदैव पिछड़ों को तरजीह दी.

शिवराज सिंह जनता के बीच सदैव रहे लोकप्रिय

वर्ष 2003 में जब मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी, तब मौका उमा भारती को मिला, जोकि लोध बिरादरी से थीं. लेकिन एक वर्ष के भीतर ही उन्हें हटाकर बाबू लाल गौर को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया. बाबूलाल गौर यादव बिरादरी से थे, लेकिन वे भी मात्र सवा साल मुख्यमंत्री रह पाए. उमा भारती कर्नाटक में अपने एक विवादित बयान से हटीं किंतु उन्होंने निशाना बाबूलाल गौर पर साधा. उनके बाद शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने. हाईन्यूज़ !

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